Wednesday, November 22, 2023

मेजर ध्यानचंद – हॉकी के अनोखे जादूगर

मेजर ध्यानचंद – हॉकी के अनोखे जादूगर (Major Dhyanchand)

ध्यानचंद को ‘हॉकी का जादूगर’ कहा जाता था, क्योंकि जब वे मैदान पर खेलते थे तो गेंद हॉकी के पीछे ऐसे भागती थी कि ऐसा लगता था कि उनकी हॉकी स्टिक में चुंबक लगी हो। यह उनके हॉकी खेलने का कौशल ही था कि गेंद को अपने नियंत्रण में इस तरह रखते कि विपक्षी खिलाड़ी उसे गेंद ले ही नही पाता था।

एक बार जर्मनी में अपने मेजर ध्यानचंद का मैच देखते समय प्रसिद्ध तानाशाह हिटलर उनका खेल देखकर दंग रह गया। उसने उनकी हॉकी स्टिक तुड़वाक यह पता करने की कोशिश कि कही उनकी हॉकी में कोई चुंबक तो नहीं लगी है, जोकि गेंद को अपनी ओर खींच रही है। वास्तव मे ऐसा नहीं था।

ये ध्यानचंद का हॉकी कौशल था जो गेंद उनकी नियंत्रण मे रहती थी।

हिटलर उनके खेल से इतना प्रभावित हुआ कि उसने मेजर ध्यानचंद को जर्मनी की टीम में शामिल होने का न्योता दिया। लेकिन मेजर ध्यानचंद अपनी देश के प्रति समर्पित थे। उन्होंने अपने भारत देश के लिए ही खेलना था, उन्होंने हिटलर का निमंत्रण ठुकरा दिया।


ध्यानचंद का जीवन परिचय (Major Dhyanchand)

ध्यानचंद का जन्म इलाहाबाद 29 अगस्त 1905 को हुआ था। उस समय इलाहाबाद संयुक्त प्रांत में था, जोकि आजकल उत्तर प्रदेश के नाम से जाना जाता है।

ध्यानचंद का परिवार बाद में झांसी शहर में शिफ्ट हो गया था और ध्यान चंद का प्रारंभिक जीवन झांसी में ही गुजरा। यहीं पर उनकी शिक्षा दीक्षा हुई।

ध्यानचंद की असली नाम ध्यानसिंह था। ध्यान चंद नाम उनका बाद मे पडा। मेजर उनकी सेवा पदवी थी।


ध्यानचंद का हॉकी सफर

ध्यानचंद को हॉकी में बचपन से रुचि नहीं थी बल्कि उन्होंने सेना में भर्ती होने के बाद हॉकी खेलना शुरू किया। आरंभिक शिक्षा के बाद मात्र 16 साल की उम्र में मेजर ध्यानचंद भारतीय सेना में सिपाही के रूप में शामिल हो गए।

वहां उन्हें हॉकी खेलने की प्रेरणा सूबेदार ‘बाले तिवारी’ से मिली। बाले तिवारी स्वयं अच्छी हॉकी खेलते थे। उन्हे देखकर ध्यान चंद की भी हॉकी में रुचि हुई और वो भी हॉकी खेलने लगे।
इसके बाद उनकी हॉकी खेलने में रुचि बढ़ती गई। मेजर ध्यान चंद का असली नाम ध्यान चंद नहीं बल्कि ध्यानसिंह था। चूँकि वह हॉकी खेलने का अभ्यास रात के समय चाँद की रोशनी में करते थे तो लोगों ने उन्हें ‘चंद’ कहकर बुलाना शुर कर दिया और इस तरह उनका नाम ‘ध्यानंचद’ पड़ गया।

ध्यानचंद आर्मी टीम की तरफ से हॉकी खेलते थे और वह जब उन्होंने न्यूजीलैंड का पहला विदेशी दौरा किया था तब वे इंडियन आर्मी टीम के प्रतिनिधित्व के लिए ही गए थे।

न्यूजीलैंड उनकी टीम ने 18 मैच जीते और केवल 2 मैच ड्रॉ किए और एक मैच ही हारी। उनका और टीम टीम और मेजर ध्यानचंद के अद्भुत प्रदर्शन को देखकर उस समय न्यूजीलैंड में सभी दर्शक उनके घोर प्रशंसक बन गए थे।


आगे का सफर

ध्यानचंद की आर्मी सेना और खेल दोनों में प्रगति होती गई। सेना में वह सिपाही से लांस नायक बन गए और हॉकी टीम में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने लगे। 1928 में एम्सटर्डम ओलंपिक के लिए भारतीय टीम के चयन के लिये ध्यानचंद संयुक्त प्रांत की टीम से खेले और उन्हें भारतीय राष्ट्रीय हॉकी टीम में चुन लिया गया।

1928 के ओलंपिक खेलों में ध्यान चंद अद्भुत प्रदर्शन किया और भारतीय टीम ने हॉकी का पहला स्वर्ण पदक जीता। उसके बाद निरंतर मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी टीम का प्रतिनिधित्व करते रहे। उन्होने 1932 और 1936 में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत ने अच्छा प्रदर्शन किया और इसमे मेजर ध्यानचंद का सबसे बड़ा योगदान रहा।

भारत ने अभी तक कुल 8 गोल्ड मैडल पदक जीते हैं, जो 1928 से 1956 तक लगातार छह और बाद में दो स्वर्ण पदक जीते थे। मेजर ध्यानचंद का तीन गोल्ड मेडल में अहम योगदान रहा है।

1936 के ओलंपिक खेलों के बाद मेजर ध्यानचंद ने हॉकी से संन्यास लेने की घोषणा कर दी और उन्होंने हॉकी से संयास ले लिया। बाद में वह हॉकी की सेवा के लिए अलग-अलग कार्य करते रहे।

1956 में सेना में मेजर की पोस्ट से रिटायर होने के बाद वह राजस्थान के माउंट आबू में हॉकी कोच के रूप में कार्य करते रहे। वह नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स में हॉकी कोच भी बने।

ध्यानचंद का देहावसान

जीवन के आखिरी दिनों में वह अपने मूल शहर झांसी में रहे और 3 दिसंबर 1979 को उनका निधन हो गया।

ध्यानचंद हॉकी के सर्वकालिक महान खिलाड़ियों में सबसे ऊपर हैं और वह हर भारतीय के लिए गौरव का विषय हैं।

ध्यानचंद को उनके महत्वपूर्ण योगदान के लिए ‘पद्मभूषण’ सम्मान मिल चुका है।

उन को भारत रत्न देने की मांग निरंतर होती रहती है जो कि उनका अधिकार है।

 

Topic: Major Dhyanchand की जीवनी


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